Trigeminal Neuralgia Description in Hindi

02
Aug

Trigeminal Neuralgia Description in Hindi

ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया एक ऐसी बीमारी होती है जो कि नसों से जुड़ी होती है। जिसे नर्व डिसऑर्डर भी कहते हैं। इस बीमारी में हमारे चेहरे के किसी खास हिस्से में बेहद दर्द होता है। मरीज को ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसे बिजली का करंट लगा हो। यह दर्द ट्राई जेमिनल नाम की नस में होने वाले दर्द की वजह से होता है।

 

ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया के लक्षण क्या है?

 

यह बीमारी बेहद दर्द देने वाली बीमारी है। जिसके लक्षण एक या अधिक तरह के हो सकते हैं यह इस प्रकार है-

 

     •    खतरनाक दर्द - इस बीमारी में चेहरे पर बेहद ही तेज व चुभन वाला दर्द होता है। मरीज को ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसे बिजली के झटके लग रहे हो। चेहरे को छूने, बोलने, दांतों को ब्रश करने के दौरान और कुछ खाने के दौरान बेहद दर्द होता है।

     •    अनिश्चित दर्द - इस दर्द की कोई समय सीमा नहीं होती है। यह कुछ सेकंड में भी ठीक हो सकता है, कुछ मिनटों में भी ठीक हो सकता है या फिर कई हफ्तों, महीनों तक भी रह सकता है।

     •    दर्द व जलन - इस बीमारी का दर्द जब उठता है तब इसमें जलन भी महसूस होती है। यह दर्द लगातार बना रहता है। यह चेहरे के एक हिस्से को प्रभावित करता है लेकिन कभी-कभी दोनों हिस्से में भी दर्द महसूस हो सकता है।

     •    ऐठन  - चेहरे पर दर्द और जलन के साथ ही मांसपेशियों में ऐंठन की समस्या भी होने लगती है। यह दर्द बहुत तीव्र और चुभन वाला होता है।

 

 

ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया के कारण क्या है?

 

यह बीमारी होने की कई स्थितियां हो सकती है। कई बार शरीर में दूसरी परेशानियों के कारण भी यह परेशानी जन्म ले लेती है -

 

     •    सूजन  - कई बार मरीजों में यह देखा जाता है कि उनकी किसी रक्त वाहिका में सूजन आ जाती है। जिसकी वजह से उन्हें यह बीमारी परेशान करने लगती है।

     •    ट्यूमर - ट्यूमर होने के कारण भी नसों पर दबाव पड़ता है जिसकी वजह से ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का दर्द उठने लगता है।

     •    मल्टीपल स्क्लेरोसिस - यह एक ऐसी परेशानी होती है जो कि मायलीन शीथ को नुकसान पहुंचाती है। माइलीन शीथ हमारी नसों के चारों ओर की एक सुरक्षा करने वाली कोटिंग होती है, जो कि क्षतिग्रस्त हो जाती है। जिसकी वजह से हमें न्यूराॅल्जिया का दर्द होने लगता है।

     •    बढ़ती उम्र - यह बीमारी बढ़ती उम्र की वजह से भी हो सकती है ऐसा देखा गया है कि 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में यह बीमारी अधिक देखी जाती है हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है यह बीमारी किसी को भी हो सकती है।

     •    अनुवांशिक - कुछ मामलों में एक बीमारी में अनुवांशिकता भी देखी गई है यदि आपके परिवार में पहले किसी को यह बीमारी रही हो तो आपको भी होने की संभावना बढ़ जाती है।

 

 

ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का पता कैसे लगाते है?

 

इस बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज के दर्द के प्रकार, जगह और ट्रिगर्स को समझते हैं। उसके बाद मरीज को निम्न टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है -

 

     •    एम आर आई से ट्राईजेमिनल नस के दबने का कारण पता लगाया जाता है।

     •    न्यूरोलॉजिकल एग्जामिनेशन और रिफ्लेक्स टेस्टिंग करके रोगी के रिफ्लेक्स को अलग-अलग टेस्ट से पता लगाया जाता है।

 

इस प्रकार के कुछ टेस्ट किए जाते हैं जिससे कि रोगी की सही बीमारी का पता लगाया जा सके। टेस्ट कैसे करना है यह डॉक्टर मरीज के द्वारा बताया गया लक्षण और संकेतों के हिसाब से तय करते हैं।

 

 

ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया का इलाज कैसे किया जाता है?

 

इस बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर के पास बहुत सारे विकल्प मौजूद होते हैं जो कि इस प्रकार है -

 

     •    मेडिसिन - क्योंकि इस बीमारी में दर्द बहुत ही तेज और गंभीर होता है इसलिए दर्द से राहत के लिए दर्द निवारक दवाएं डॉक्टर द्वारा प्रस्तावित की जाती है।

  • इसके साथ ही दर्द की वजह से नसों पर इसके प्रभाव को रोकने के लिए दौरे रोधी दवाएं भी दी जाती है।
  • मांसपेशियों में होने वाली ऐंठन को आराम देने के लिए भी ट्राईसाईकलिक एंटीडिप्रेसेंट्स दवाई दी जाती है।

     •    सर्जरी - वैसे तो इस बीमारी के अधिकतर मामले दवाओं से ही ठीक हो जाते हैं लेकिन यदि दर्द गंभीर होता है तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह भी देते हैं।

 

JPRC न्यूरो स्पाइन क्लिनिक पर उपलब्ध है ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया की नई तकनीकी सुविधाएं -

 

     •    हमारे JPRC न्यूरो स्पाइन क्लिनिक पर इस बीमारी के इलाज के लिए सभी नई तकनीकें उपलब्ध हैं जो कि बहुत ही प्रभाव कारी होती हैं।

     •    आज के नए न्यूरोसाइंस में रेडियो फ्रिकवेंसी न्यूरोमोड्यूलेशन मिनिमल इनवेसिव टेक्निक का एक मॉडर्न तरीका है।

     •    इसका सार उच्च आवृत्ति तरंगों के साथ सीधे घाव पर ही प्रभाव डालता है।

     •    इस तकनीक का शरीर के किसी भी दूसरे अंग पर दुष्प्रभाव नहीं होता।

     •    यह प्रक्रिया आउटपेशेंट आधारित की जाती है।

     •    इस तकनीक के द्वारा इलाज लेने पर मरीज को बहुत ज्यादा दिनों तक आराम नहीं करना होता है बल्कि बहुत जल्दी रिकवरी हो जाती है।

     •    इस तकनीक का उपयोग करने के बाद दर्द तुरंत ही खत्म हो जाता है।

 

हमारे JPRC न्यूरो स्पाइन क्लीनिक जयपुर, भारत में पहली बार हमारे इंटरवेंशनल दर्द चिकित्सक और न्यूरोसर्जन द्वारा  ट्राइजेमिल नर्व शाखाओं का रेडियो फ्रीक्वेंसी और न्यूरोमॉड्यूलेशन से इलाज किया गया है।

 

हम पिछले 11 सालों से हमारे मरीजों को न्यूराॅल्जिया के दर्द से राहत दिला रहे हैं। हमारे यहां से इलाज और राहत पाकर सभी मरीज पूरी तरह से स्वस्थ और संतुष्ट घर वापस लौटते हैं।